बाबा चतुर दास जी कविया
आज तक बाबा चतुरदासजी का कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं मिला हे ! चतुरदासजी महाराज एवं सुखरामदास जी समकालिक गुरु भाई थे ! सुखरामदास जी का इतिहास उपलब्ध हे इनका निर्वाण विक्रम संवत 1866 को कार्तिक सुदी 12 के दिन हुआ ! अतः करीब-करीब चतुर दास जी महाराज का कार्यकाल इसी के आसपास रहा होगा ! चतुर दास जी का जन्म चारण कुल की कविया शाखा में हुआ ! सुखरामदास जी महाराज के साथ इन्होने द्वारका जी की यात्रा की , जब आप द्वारका जी से वापस आ रहे थे तब आप जुनागढ़ भी गए ! वहां पर गिरनार पर्वत की परिक्रिमा की और वापसी में आप रास्ता भूल गए ! रात हो गई आसपास कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ! अचानक आपको कुछ दूर प्रकाश दिखाई दिया ! जब आप अपने गुरु भाई संत श्री सुखरामदास जी के साथ उस स्थान पर गए तो देखा की वहां पर एक तेजस्वी संत थे , जिनका चेहरा सूर्य के आभा मंडल की तरह चमक रहा था संत ने इन्हें पुछा की क्या भूख लगी हे ? इन्होने कहा हाँ , संत ने शेरनी का दूध निकाला और इनको पीने के लिए दिया | चतुरदास जी महाराज ने दूध पी लिया परन्तु सुखरामदास जी कुछ संकुचाये परन्तु इन्होने भी दूध पी लिया ! संत ने इनसे पूछा की कुछ दिखाई दे रहा हे ? चतुरदास जी ने कहा की मुझे तो बुटाटी गावं दिखाई दे रहा हे ! संत ने आशीर्वाद दिया की जाओ बुटाटी गावं और कहा की कलयुग में तुम्हारे द्वारा लकवे का इलाज होगा ! और सुखरामदास जी को कहा की तुम्हारे द्वारा पागल कुत्ते के काटने का इलाज होगा ! कलयुग में तुम्हारी पूजा होगी ! दोनों संत वहां से गाव बूटाटी लौट आये !
कहते हे की चतुरदासजी के दो भाई और थे इन्होने पारिवारिक सम्पति का बंटवारा किया ! करीब 250 बीघा कच्ची जमीन चतुरदास जी के हिस्से में आई जो इन्होने चारभुजा मंदिर को दे दी ! संसार से चतुरदास जी महाराज को वैराग्य हो गया वे चारभुजा मंदिर में रहकर तप एवं ध्यान करने लगे !
संत श्री सुखरामदास जी बुटाटी से 6-7 किलोमीटर दूर गाँव पौह में रहने लगे ! जहाँ आज भी पागल कुत्ते के काटने का इलाज उनके नाम से होता हे !
अपने जीवन काल में श्री चतुरदास जी महाराज ने अनेको चमत्कार दिखाए , परन्तु वर्तमान में भी आज लकवा से पीड़ित रोगी पुरे हिंदुस्तान से ही नहीं बल्कि विदेशो से भी यहाँ आते हे और केवल 7-7 फेरी लगाने से उनकी शारीरिक असाध्य तकलीफ बिना किसी दवा से ठीक हो जाती हे !
बाबा के जीवन काल में घटित कई चमत्कारी घटनाये जेसे~
1. भाई सुखराम दास जी द्वारा काटे गए स्वयं के गुप्तांग द्वारा बहते खून को तालाब की मिटटी लगाकर बंद करना !
2. मृत गाय को जीवन प्रदान करना !
3. मृत बेल को जीवित करना !
बुटाटी धाम पहुचने के लिए आवागमन की व्यवस्था~
पवित्र धाम बुटाटी राजस्थान (भारत) में हे ! यह जयपुर से करीब 250 किलोमीटर एवं जोधपुर से करीब 150 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हे ! रेलवे के द्वारा जोधपुर से बीकानेर मार्ग पर स्थित मेड़ता रोड या नागोर स्टेशन पर उतरना पड़ता हे नागोर से बुटाटी धाम की दुरी 50 किलोमीटर एवं मेड़ता से करीब 33 किलोमीटर हे !
रहने एवं भोजन की वयवस्था~
लकवा एक ऐसी बीमारी हे, जिसमे मरीज के साथ 2-3 व्यक्तियों को आना पड़ता हे सभी के लिए बुटाटी धाम में रहने की वयवस्था (कमरे, बरामदे) बिछाने के लिए गद्दे एवं ओढ़ने के लिए रजाई उपलब्ध हे ! भोजन की वयवस्था में भोजन की कच्ची सामग्री , भोजन पकाने के लिए बर्तन एवं लकड़ी ! लाइट पंखे एवं पानी की अच्छी वयवस्था हे ! सभी वयवस्था बहुत ही अच्छी हे !
सबसे बड़ी बात तो यह हे की यह सब निशुल्क हे !
साभार – बुटाटी धाम के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री रतनसिंहजी
गणपत सिंह मुण्डकोशिया-9950408090