लगत पाव करनल नमो,
दीपत जांगल देस।
सगत रचावत सुंपक्षरो,
भगत कवी भमरेस।
कलु में कलेश काप, चहुदे संमत चाप,
आया चमालै में आप, सगत सुवाप।
धरा पै सुगाल धाप, मरूधरा अणमाप,
थिरा सुख धर्म थाप, प्रजारण पाप।
तात मेहा दियो तार, विषधर कियो वार,
आय उण वार ,दियो जहर उतार।
अणदै करी उचार, पल में सुणी पुकार,
बोगी तण रूप धार, कूंप काढ बार।
सेख आ मिल्यो सिमाड़, बीर बैनड़ी बताड़,
सेन को भातो जिमाड़ ,जुध में जिताड़।
समली रुपां सजाड़ ,जेल कटवाड़ धाड़,
बींज गिरतां बचाड़, पूगल पुगाड़।
चाल वो वेचाल मछराल अंतकाल भाल,
कान अंध आल करी, कंध चढ्यो काल।
जांगल जिकाल भुवपाल ओ झिकाल झाल,
बणी बबराल उण ताल विकराल।
प्रवाड़ा असंखां थाय, जिभ्या शेंष थक जाय,
गुण कोहु केता गाय, पार नही पाय।
सेवगां करे सहाय ,आधै हेलै दोड़ी आय,
मधुकर कंठ माय, गंठ दी गिराय ।