गीत संपखरो – तेमड़ाराय रो
नमो माडरांणी बखाणी तो सुरारांणी नमो नमो,
दीपै भांणी सात अहो भाखरां रै देस।
सालिया मेछांणी मुरड़ मंडिया केक संतां,
इल़ा मौज माणी राज अन्नड़ां आदेस।।1
सालिया मेछांणी मुरड़ मंडिया केक संतां,
इल़ा मौज माणी राज अन्नड़ां आदेस।।1
धमां -धमां रमै जेथ गूघरां वीनोद गूंजै,
धूजै धरा धमां-धमां कदम्मां री धाक।
हमां-हमां करंती किलोल़ लाख नवै हेरो,
नमै जेथ खमा -खमा सुरां-नरां नाक।।2
चढी सदा भीर आई चारणां आधार चंडी,
बणी धरा धारणा सुनेसड़ा विसेक।
तारणा कल़ु में तुंही ताकवां तनुजा बणी,
वारणा ले तोरा जयो कारणा विमेक।।3
अनोखा काम कीधा सबां अचंभा आवै इल़ा,
पूगै हाथ लंबा सको समंदां रै पार।
लूंबै जाण दास झंबा लोवड़ी री ओट लेखै,
साय आवै फाड़ थंबा सेविया़ं री सार।।4
धारणी त्रिशूल़ करां सरां तरां फबै धजा,
जारणी बकार दधि हाकड़ो जहांन।
सारणी केतांन काज महाराज तोनै सेवी,
ऐवी वेर आय नै उबारणी अचांन।।5
मोखां में विराजै थल़ी झंगरां में मामड़ाई,
वसै ज्यूं ई थल़ी रल़ी दासोड़ी विसेस।
थल़ी-मनरंग जैड़ा सुचंगा सो थाट थारा,
आखै आय सल़ी दुनी आवड़ा आदेस।।6
भणै दास गीध एक आस तोरी भलां-भलां,
उरां में विसास आई तमीणो अथाग।
करै विघन्नां विनास वैरियां रो मुंह काल़ो,
जप्या जाप जामणी सु भास जोत जाग।।7
गिरधरदान रतनू “दासोड़ी