किसको जुर्म दिख रहा है
जुर्म की धारा इन पाखण्डों से दिख रही है,
उनके कर्मों से ये भु धरा आज हिल रही हैं।
दुनिया में कितने पैसेवर हैं न जाने कितने गरीब,
पर जगह-जगह अमीरी गरीबों को सेख रही हैं।।
उनके कर्मों से ये भु धरा आज हिल रही हैं।
दुनिया में कितने पैसेवर हैं न जाने कितने गरीब,
पर जगह-जगह अमीरी गरीबों को सेख रही हैं।।
जुर्म जन्नत को खा रहा या पर्दा स्वयं बना रहा,
सफेद-सफेद में इक काला दाग स्वयं पे लगा रहा।
कौन इंसान शैतान हैं आज भेदिला मन कहता हैं,,
शैतान आज ताबिज पुलिस के गले दिखा रहा।
सफेद-सफेद में इक काला दाग स्वयं पे लगा रहा।
कौन इंसान शैतान हैं आज भेदिला मन कहता हैं,,
शैतान आज ताबिज पुलिस के गले दिखा रहा।
जुर्म से जन्नत कांप रही इंसान मुर्दों में क्षमा रहे,
कौन देश का हित सोचे शैतानी कई दिखा रहे ।
सच की धारा प्रबल हैं इंसानियत को भुल चुके,
कब आयेगा भगत केसरी यूही सबको देख रहे ।।
कौन देश का हित सोचे शैतानी कई दिखा रहे ।
सच की धारा प्रबल हैं इंसानियत को भुल चुके,
कब आयेगा भगत केसरी यूही सबको देख रहे ।।
इंसान ज्ञान का कनिष्ठ अर समझ का दाता रहा,
अच्छे कर्मों से एक सर्व हित का संदेश देता रहा।
अब कलयुग में क्या बाधा इंसान पर आ पडी हैं,
कि इंसान होकर अब हैवानियत का देख रहा।।
अच्छे कर्मों से एक सर्व हित का संदेश देता रहा।
अब कलयुग में क्या बाधा इंसान पर आ पडी हैं,
कि इंसान होकर अब हैवानियत का देख रहा।।
धरा व्योम के क्षितिज को जिस तरह तुमने देखा हैं,
असंभव कुछ न रहा संभव होते मैंने भी देखा हैं ।
शैतानी से भिड जाओं शैतानी को भु में दफना दों,
क्युकीं इनकी करनी से आज ये भारत भुखा हैं।।
असंभव कुछ न रहा संभव होते मैंने भी देखा हैं ।
शैतानी से भिड जाओं शैतानी को भु में दफना दों,
क्युकीं इनकी करनी से आज ये भारत भुखा हैं।।
सफेदपोषी नेता तो जूर्म की धारा में लहलहा रहे,
ये कुकर्मी नैता जो राजनिती में बढ-चढ आ रहे।
राहुल, केजरी, सोनिया या लालु प्रसाद ही क्यों न,
ये भाषण का पाठ पढा-पढाकर देश को खा रहे।।
ये कुकर्मी नैता जो राजनिती में बढ-चढ आ रहे।
राहुल, केजरी, सोनिया या लालु प्रसाद ही क्यों न,
ये भाषण का पाठ पढा-पढाकर देश को खा रहे।।
प्रमोद के प्रांगण पर हर कोई बैठना चाहता हैं,
एक को गिराने में अपनी सुदबुद्ध को खोता है।
सोच बदल दों तुम समझ से इस देश को बदल दों,
हर इंसान मिल जाओं रणदेव भी चाहता हैं ।।
एक को गिराने में अपनी सुदबुद्ध को खोता है।
सोच बदल दों तुम समझ से इस देश को बदल दों,
हर इंसान मिल जाओं रणदेव भी चाहता हैं ।।
आराम, खुशियों के पाठ पढने तुम मचल रहे हो,
फिल्मों के जादु से तुम अपने कर्म भुल रहे हों।
सही पथ का तुम्हें जीवन मे कुछ न बोध रहा हैं,
एक-दूसरें पर जीवन में बस कीचड उछाल रहे हों ।।
फिल्मों के जादु से तुम अपने कर्म भुल रहे हों।
सही पथ का तुम्हें जीवन मे कुछ न बोध रहा हैं,
एक-दूसरें पर जीवन में बस कीचड उछाल रहे हों ।।
रणजीत सिंह रणदेव चारण
गांव – मुण्डकोशियां, राजसमन्द
मोबाइल न. – 7300174927