March 25, 2023

बरखा होगी बावली-रणजीत सिंह रणदेव चारण

बरखा होगी बावली
बरसात पर कुछ दोहें रणजीत सिंह रणदेव चारण रचित
हवा चलें बे रूख सी,   लावें बादल खोल।
रोचक चलें रिमझिम सी, आज करे ना मोल।।१।।
 
बरखा चालें बावली, दिखें न कोई ताज।
रिमझिं चालें इयां किया,,कोई दिखे न काज।। २।।
 
टपक-टपक काज टालें, टालें न कोई रात।
दिवस आइगों दांतलौं,, बेबस राखें बात ।। ३।।
 
अंबर आयों आलसी, एकों करें बरसात।
मती करों न महारथी,,जन-धन ऊपर घात ।।४।।
 
बरखा चालें बावली,, रखें न कोई चोंज।
जैं होंवें छत आंगणों,, सुखी अर करें मौज।। ५।।
 
फुटपाथ महल फांसलों, बरखा लावें  सांच।
महलां वालें मौज में,, फुटपाथ पडें कांच ।। ६।।
 
जिया न चावें जानवी,,  बे ही लावें बाढ।
एक अरू आस तापगों,,ओं काईं आषाढ।। ७।।
 
झोपड जन रहते हुयें, दु:ख करते आभास।
सरकारें इनको भला, कब देंगी आवास ।। ८।।
रणजीत सिंह रणदेव चारण
मुण्डकोशियां, राजसमनंद 

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