।।महाभारत का प्राकृतिक नीति-पाठ।।
क्रांतिचेत्ता अग्रदूत वीरवर ठाकुर केसरी सिंह जी बारहठ साहब ने, अंग्रेजों की अजेय शक्ति जिसके राज में सूरज कभी भी अस्त नहीं होता था, उससे टक्कर में क्रान्तिकारी अपने को दुर्बल समझने लगे थे, उस किंकर्तव्यविमूढ समय में ईस्वी सं. 1931 में असहयोग आन्दोलन के समय में ऐक घनाक्षरी कवित्त लिखकर आजादी के दीवानों में नवीन ऊर्जा का संचार कर दिया और बाजी को पलट कर दिखा दिया। यह दूसरा बड़ा व महत्वपूर्ण अवसर था जब बारहठ साहब ने ब्रितानी साम्राज्य पर करारा वार किया था। पहला वार करके महाराणा साहब को दिल्ली दरबार में जाने से रोक ही दिया था।
बारहठ साहब ने ऐक घनाक्षरी कवित्त के माध्यम से चेतना का संचार किया कि …..देखिये, महाभारत के महासमर में कौरव महाशक्ति के सामनें पाण्डवों की स्वल्प सैन्य शक्ति ने श्रीकृष्ण की सहायता से विजयश्री का वरण किया था, उसी भांति वर्तमान समय में भी भारतवर्ष की जनशक्ति आपसी सहयोग, समता एवं एकता के बल पर महात्मा मोहनदास कर्मचन्द गांन्धी के निर्देशन में अवश्य ही विजयश्री का वरण करेगी।
और इससे भारतीय जन मानस में नवीन ऊर्जा का संचार होकर दुगुने चौगुने जोश से आजादी की अलख देश में सर्वत्र व्याप गई, और सुपरिणाम पाया।
।।घनाक्षरी कवित्त।।
धर्मछलि छद्मतें छिपाय छलीछीनें छोनि,
द्रोनभरि भीष्मभेदें स्वारथ की सिध्दी हेत।
बनें धृतराष्ट्र अंध दुर्यौधन शक्ति गहि,
कर्ण के सहारे दुःशासन निभाये लेत।
शल्य हो हिये में उठें तबें पंचशक्ति मिलि,
अल्पहू युधिष्ठिर व्है भीम बल तें उपेत।
अर्जुन नकुल सहदेव भाव मोहन लै,
पावें जय भारत यों प्राकृत को पाठ देत।
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)