March 21, 2023

बारहठ केसरीसिंहजी और कोटा महाराव उम्मेदसिंहजी ~ राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

।।बारहठ केसरीसिंह जी और कोटा महाराव उम्मेदसिंह जी।।
।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।।
महान क्रान्तिवीरों के अग्रणी केसरीसिंह जी के आभा मण्डल से घबराकर ब्रिटिश सरकार के वायसराय व गवर्नर जरनल आदि अंग्रेज अफसरों द्वारा साजिश रचकर मेवाड़ महाराणा व शाहपुरा राजाधिराज दोनो को दबा कर बेदखली की कार्रवाही के द्वारा केसरीसिंहजी की समस्त अचल सम्पति जागीरें हवेली आदि जब्त करवा दी गई और इस राजशाही परिवार को दर दर का भिखारी बना दिया गया। इस पर भी वे उस नर नाहर का हौंसला और राष्ट्र के साथ भक्ति व प्रेम को डिगाने में सफल नही हो सके। जब जब्ती की कार्यवाही के दौरान रियासत के सिपाही आदर व सम्मान के साथ शाहपुरा स्थित हवेली को जब्त करने आये तब के राजपूत कोतवाल व उसके स्टाफ ने केसरीसिंह जी की पत्नी मांणिक कुंवर जी को निवेदन किया कि कार्रवाही करना हमारी मजबूरी है पर आप हवेली में से कीमती सोना चांदी और अन्य सामान ले जाने के लिए स्वतंत्र है। इस पर मांणिक कुंवर जी मात्र अपने श्वसुर बारहठ कृष्णसिंहजी रचित “राजपूताने का अपूर्व इतिहास” के हस्तलिखित लगभग तीस रजिस्टरों को अपने साथ लिया जो कि उन्हे समस्त हीरे जवाहरात आदि से भी प्रिय थे। इस प्रकार की परिस्थिति की मात्र कल्पना से भी आज कोई कठोर ह्रदय मानव तक सिहर जाए मगर माणिक कुंवर जी इन जिल्दों को लेकर अपने पीहर कोटा चली गई।

कोटा महाराव उम्मेदसिंहजी को समस्त घटना क्रम का ज्ञान था। ऐसे विकट समय में उन्होने अपने धर्म और कर्तव्य के साथ अपनी सनातन व उजली परम्परा का पालन किया। ब्रिटिश हुकुमत के दबाव को नजर अन्दाज करते हुये यह कहकर कि भाई अपनी बहिन की विपन्नावस्था में मदद करने के लिए ब्रितानी सरकार द्वारा पूछकर नहीं अपितु सनातन धर्मानुसार माहेरा व अपनी बहिन का दाय भाग उसे प्रदान कर अपने को उऋण समझता है, और मैं भी मेरी बहिन मांणिक कंवरजी के रहने के लिए आवास बनाकर देने में स्वतंत्र हूं और इसके लिए ब्रितानी हुकुमत की मुझे इजाजत की आवश्यकता नहीं है। कोटा महाराव उम्मेदसिंहजी ने कोटा में ही विस्तृत मैदान में ऐक बढिया भवन बना कर प्रदान किया जिसका नाम भी “मांणिक-भवन” ही रखा गया।।

इस अवसर की सार्थक व महत्ती मदद करने पर केसरीसिंहजी के ह्रदयोद्गार थे।

।।दोहा।।
कहत विज्ञ इतिहास को, पुनरावर्त प्रयोग।
नृप उमेद कवि केहरी, कृष्ण सुदामा योग।।

महाराव उम्मेदसिंहजी एक आदर्श प्रजावत्सल नरेश थे, व तत्कालीन राजाओं में उनकी सानी के इनेगिने ही थे। सदाशयता, न्याय प्रियता, सादा जीवन व प्रजाहित में संलग्न रहना उनके मुख्य गुण थे। ई. सन 1914 में जब केसरीसिंहजी पर ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह आदि जुर्मों का संगीन अभियोग चलाया तो उस समय एक ओर अंग्रेजी सरकार के साथ पूर्ण स्वामिभक्ति निभायी और दूसरी ओर केसरीसिंहजी व उनके परिवार के प्रति जैसी सदाशयता व उदारता का परिचय दिया वह अपने आप में असाधारण, अनिवर्चनिय, अकल्पनिय था। इन्ही महाराव का निधन 27 नवम्बर 1940 में हुआ था तब ठाकुर केसरीसिंह जी बारहठ साहब ने उनके प्रति शोकोद्गार स्वरूप मरसियै के द्वारा श्रद्धांजली अर्पण की जो कि आज इतिहास के सुनहरे अक्षरों में अंकित है व साहित्यानुरागी सज्जनों हेतु भी अति उच्च कोटि का संग्रहणीय काव्य है।

।।कवित्त।।
दया का अथाह सिंधु प्रेम का प्रवाह वह,
सच्चा नरनाह प्रजासुख में झुला गया।
रंचहूं न कुटिल प्रपंच न्याय मंच पर,
राजा प्रजा बीच गांठ भक्ति की घुला गया।
जनता के जीवन में जीवन मिलाय सदा,
ब्रह्म के समान व्यापि द्वैत को भुला गया।
उजड़े बसाने वाला सूखे सरसाने वाला,
नेह से हँसाने वाला जगको रूला गया।।

।।सवैया।।
भूप उमेद रहे हँसते, अपराधहु पै कटु बैन कह्यो ना।
भाव उदार रखी समता, निज अन्य के धर्म में भेद गह्यो ना।
दीन दयाल विशाल हिये, खुद कष्ट सह्यो पर-दुख सह्यो ना।
गाज परो विधना के अकाज पैं, आज गरीबनिवाज रह्यो ना।।

~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)

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