April 2, 2023

यह सिंधी गीत सुफी गायक माजी भाई जगारीया द्वारा गाया गया

यह सिंधी गीत सुफी गायक माजी भाई जगारीया द्वारा गाया गया

यह सिंधी गीत गुजरात के सीमावर्ती जिले कच्छ के लखपत तालुका के माता नु मढ़ गांव से सुफी गायक माजी भाई जगारीया द्वारा गाया गया है। मावजी भाई कबीर और शाह लतीफ को ढोल (बड़े डबल हेड ड्रम) पर क्षेत्र के अन्य लोक गीतों के साथ गाते हैं। वह माता नु मढ़ के मंदिर में देवी के लिए समर्पित भजन भी गाते हैं।

सूफ़िया-ए-किराम हों या पीर-फ़क़ीर, दरवेश हों या सामी साधू-संत सब अपने-अपने पीर-ओ-मुर्शिद और ख़ुदा से रिश्ता क़ायम करने के लिए इश्क़ पर ज़ोर देते हैं क्योंकि इश्क में इंसान अँधा होकर अंध भक्ति में लीन हो जाता है बजाय दुनियावी दिखावे के वो इश्क किसी के लिए भी हो सकता प्रेमी-प्रेमिका, आशिक माशूका या फिर अपने पीर/गुरु से मोहब्बत का। कई जगह दरवेशों और सामी साधुओं ने परवरदिगार के लिए प्रियतम (सिंधी में पिरीं) शब्द से सम्बोधित किया है-
मीटीयू अन मुहिंजियूं भैंनरु
डूंगर अन मुहिंजा डेर
मुंइखे जुदाई धी मारे अल्लाह
आईं वेंदा वंजी लाइन्दा डिंह ।।
हिंदी रूपांतरण – रेतीले धोरे मेरी बहनें हैं
पहाड़ मेरे सगे सम्बन्धी
बिछड़न मुझे मार रही है
आपका दिन तो ढल जाएगा !
शायद सुदूर अनंत रेगिस्तान की तुलना में विरह वेदना (किसी प्रियतम से अलग होने का दर्द) का कोई और परिदृश्य नहीं है। सिंधी जबान की लोक कथा सस्सी ने अपने प्रियतम पुनहु की तलाश में थार के तपते रेगिस्तान में तन झुलसाते रेतीले टीलों पर नंगे पाँव सफर किया। रेत के टीले और पहाड़ उनके अकेलेपन के साथी थे जो निराशा से भरे अंतिम सफर तक साथी की तरह साथ रहे ।
18 वीं शताब्दी के सिंध के प्रसिद्ध सूफी दरवेश मुर्शिद शाह अब्दुल लतीफ भिटाई ने बेइंतहा प्रेम की लोककथाओं को “बैत और वाई” (तंभुरो नामक वाद्य यंत्र पर गाया जाने वाला राग) के माध्यम से पिरोया है। सूफी दरवेश भिटाई ने हिन्द सिंध क्षेत्र की कई प्रसिद्ध दुखद प्रेम किंवदंतियों को अपने “शाह जो रिशालो” में सिंधी भाषा में संकलित किया है । इस गीत में शाह भिटाई ने ससुई की आवाज़ बनकर दुखांत जीवन और प्रियतम से जुदाई को बयां किया था जिसका प्यारा पुनहु सुबह उससे दूर चला गया क्योंकि पुनहु के भाई इस अंतर्विवाह (दूसरे समाज) से नाराज थे।
सस्सी की सुंदरता चहुओर बिखर चुकी थी क्योंकि उसका जन्म भम्भोर के राजा के घर हुआ लेकिन लालन पालन एक धोबी के घर हुआ था और पुनहु खान बलोचिस्तान के केच मकरान की रॉयल फेमिली से ताल्लुक रखते थे इसलिए पुनहु के भाई इस विवाह से नाराज हो गए और इस प्रेम कथा की राह में रोड़ा बन गए ।
सस्सी पुनहु अपने प्यार को इतिहास के सुनहरे अध्याय में परवान चढ़ा गए जिससे आज भी इंडो पाक सरहद (बाड़मेर-जैसलमेर , कच्छ और सिंध) पर टूटे दिलों की धड़कने बैत और वाई से पिरो रही है ।
–आशुदान मेहडू 

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