March 31, 2023

शाह अब्दुल लतीफ भिटाई का यह गीत सिंधी भाषा में खूबसूरती से एक सूफी कविता

शाह अब्दुल लतीफ भिटाई का यह गीत सिंधी भाषा में खूबसूरती से एक सूफी कविता
शाह अब्दुल लतीफ भिटाई का यह गीत सिंधी भाषा में खूबसूरती से एक सूफी कविता प्रस्तुत करता है, शाह भिटाई को सिंधी भाषा सबसे बड़ा विद्वान, रहस्यवादी संत , दरवेश फकीर (पीर)ओर कवि माना जाता है, यह गीत राग मल्हार में कंपोज़ किया गया है । यह गीत एक ऐसी लड़की की कहानी को प्रस्तुत करता है जिसका इस भौतिक रूप से सुसज्जित खूबसूरत दुनिया से कोई इच्छा नही है बल्कि वो स्वामी (सिंधी में सामी) का रूप धरे साधुओं की राह पर चल कर उनकी तरह तपस्वी बनना चाहती है ।
यह गीत हिन्दू मुस्लिम एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द के सुनहरे अध्याय को याद दिलाता है ।।
गीत के शुरू की 2 लाइन में शाह भिटाई द्वारा पाक परवरदिगार से दुआ मांगी गई है कि सब तारीफें आपके लिए है और मेरी समस्याओं को आप तो अच्छी तरह जानते हो में क्या आपको कहके सुनाऊं…..
जीजलड़ी मुहिंजो सामींड़न सां संग
सामींड़न सा संग मोयो वञ्जन धा मन
आयलड़ी मुहिंजो सामींड़न सां संग
एक लडक़ी अपनी माँ से कह रही है कि में सामी की राह पर चलना चाहती हूं, में सामी के साथ जाउंगी वो कहीं भी जाये ओर में जोगी बनना चाहती हूं।
नांग नोड़ीयों हथन में, कान कीनी ना कन
कुफर झोलियों हथन में , वंजन वायूँ कंन
लड़की कह रही है कि स्वामीजी सांप हाथों में लेकर चल रहे है ओर उन्हें किसी चीज़ की ही इच्छा नही है।
स्वामीजी अपने साथ झोला रखते है जिसमें वो जरूरी खाने का सामान रखते है।
सामी किसी चीज़ की परवाह करे बगैर झोला उठाकर अनंत चलते रहते है।
सुहीनों शाह लतीफ चवे , रावल डेही व्यो रंग अंत मे शाह लतीफ कहता है कि अगर किसी ने अल्लाह के रंग को पहचान लिया या अपने अंदर के परमात्मा को पहचान लिया तो उन्हें किसी सम्पति या दुनियादारी की जरूरत नहीं है।।
–आशुदान मेहडू

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