March 25, 2023

गीत कोठारियां री अनीति रौ – जनकवि ऊमरदान लाळस

एक गीत ऊमरदानजी लाऴस री दबंगता दरसावतो, जिणमें तीन कोठारी बाणियां रा माजाया भाई, चारणां रा मुंदियाड़ ठिकाणा में घणी रापटरोऴ मचाय लूटणो शुरु करियो अर बठां रा ठाकुर साहब चैनसिंहजी बारहठ ने घणा दुखी करिया। सेवट आ बात उमर कवि कनै पूगी। कवि मारवाड़ रा तत्कालीन मुसाहब आला सर प्रताप रा खास मानिता हा, वै निडरता दिखावता थका बाणियां रो हूबोहूब गीत बणाय सर प्रतापसा ने खऴकायो अर कोठारियां री कामदारी ने खोस जेऴ में न्हाक मुंदियाड़ ने बचाई।

।।गीत – बड़ी सांणौर।।
पुत्र वणक त्रहुं भ्रात अन्याव रा पूतळा,
छिद्र कलकता तक न को छांनां।
जुलम री करी वातां जिके जणावूं
कळपतरु सुणीजे पता कांनां।।1।।

बुधौ बगतावरौ बाप बेटी बणै,
हद ठगां लपेटी अकल हरतां।
जबर चीजां केई राज री झपेटी,
कांम पेटी तणौ खास करतां।।2।।

तिण मुदै कैद रौ हुकम दीधौं तखत,
छिद्र गत उण वखत न को छोडी।
अफंड री केई वातां करे ऊठग्यौ,
कठै दी डंड री हेक कोडी।।3।।

खत किया एकूका गांम (पर) दो दो खड़ा,
करावै सही नै जिरै कीना।
चाल कर इसी नै गांम सब चैन रा,
लड़े तीनूं जणां वांट लीना।।4।।

हाय तोबा करे लोक हलहलायौ,
पटा नै मिलायौ भिस्ट पिंडकां।
जबर मुंदियाड़ रौ कांम इम जमायौ,
गमायौ कैरलौ गांम गिंडकां।।5।।

पांतियां पड़ंती देख अणपार री,
लूट में विजैसिंघ उरौ लीधौ।
समझ रै साथ निज धणी री संक सूं,
दवारै हरी रै चाढ़ दीधौ।।6।।

गांम रै कांम दीवांण राखै गुसट,
लगोबग आय निज कांम लागा।
चाटगा हजारां साल चौतीस री,
निरख ले धांन री वळे नागा।।7।।

कियौ सौदौ मकी सिमरथै कांणियै,
मौळ पड़ पड़ गई कसर मुगती।
उण मुदै मंडावण गांम अजमेर रौ,
भूप रै बारहठ कैद भुगती।।8।।

जिकां मुरधरा विच इसा रचिया जुलम,
डाळ कर धणी सूं नांय डरिया।
आप अड़तीस री साल कीधी इसी,
कांम मुंदियाड़ सूं दूर करिया।।9।।

लुचां हरद्‌याळ सूं अड़ंगौ लगायौ,
छळ करे आप सूं रया छांनै।
सताबी हुई सुळसुळ मुलक सैर में,
मुंसी कोठारियां तणी मांनै।।10।।

जुलम री बताई गळी कूंची जिका,
लोभ वस हुयोड़ौ नांय लखियौ।
पंजाबी रयौ बादर तणी पकड़ में,
सांपरत हाल नह छूट सकियौ।।11।।

चलायौ मसोदौ कपट री चाल रौ,
भमायौ हाल रौ हाल भाकौ।
संग बादर तणै रयौ उण साल रौ,
हुआ हरद्याल रौ बुरौ हाकौ।।12।।

दोय दिन संक सूं फेर वारौ दियौ,
च्यार दिन दायमा धके चुपियौ।
अनाथां करावण नास रौ अबै तौ,
रास रौ आसरौ लेय रुपियौ।।13।।

रंग रुळी तळै हुय गया रळरळू जी,
प्रजा नै पळू जी मेळ पीधौ।
सास लै भैंस रौ वासतै सळू जी,
कळू जी पाय परधांन कीधौ।।14।।

कपट कोठारियां तणा इम किताई,
जिके सारा कया नांय जावै।
इणां नै सर करै जिसा जग आद दिन,
आप बिन और नह निजर आवै।।15।।

पेच मुंदियाड़ पर बादरौ पिलाड़ी,
कँवर रै लिलाड़ी मांय करकै।
हारग्या बियां सूं हिलै ना हिलाड़ी,
सिलाड़ी आप बिन नांय सरकै।।16।।

इस प्रकार उमरकवि के प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण से सर प्रताप नें अपने प्रताप से जुलमी को हटाकर न्याय कायम किया!!

~प्रेषित: राजेंद्रसिंह कविया (संतोषपुरा सीकर राज.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: