संत मिलन सम सुख जग नांहि।
संत उर्वरा धाट पारकर भूमि में गहरांदेवी और खेतदानजी के दाम्पत्य जीवन में विक्रमी संवत 2012 में हरदान नामक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। नगर तहसील के चुङियो गांव की धरा को इस बालक की जन्म भूमि होने का गौरव प्राप्त हुआ। बचपन से ही बालक में संत स्वभाव के दर्शन होने लगे। 14 वर्ष की बाल वय में जालमपुरीजी महात्मा का सानिध्य इस बालक को प्राप्त हुआ और अध्यात्म की यात्रा को त्वरित गति मिली। 17 वर्ष की अल्प वय में सांसारिक जीवन की तृष्णाओं का त्याग कर नेपाल के महात्मा नर्मदापुरीजी से दीक्षा ग्रहण करने पर *श्री हरदेवपुरी* नामकरण हुआ सर्वप्रथम कोटङी गुफा (पालनपुर जिला)में प्रभुस्मरण किया वर्तमान में आप ध्यान योग आश्रम जसपुरिया (बनासकांठा) के मंहत श्री है। संत शिरोमणि परम पुज्य महंत श्री हरदेवपुरीजी महाराज श्री बनासकांठा संत समाज के अध्यक्ष है। आप संगीत के उद्भट ज्ञाता है साथ ही अथाह ज्ञान राशि भी आपमें दृष्टिगोचर होती है। शिष्य -संपदा की दृष्टि से मंहत श्री धनाढ्य है।अपने उपदेशों से जन सामान्य के चरित्र निर्माण में महती भूमिका अदा कर रहे है। आपकी शिष्य परम्परा में श्री दयालपुरी जी महाराज का नाम उल्लेखनीय है।
डिंगल के कवि करणीदानजी आसिया के शब्दों में:-
हरदेव पुरी गुणवान गाथा
भिन्न भिन्न कथे हर ज्ञान भणे।
सब ग्रंथ सुवेद उच्चारण शुद्ध
विविध विधि सबको वरणे।
सब भांत अथाह सुज्ञान रो सागर
कोटिश शंका, संदेश कपे।
करवा जग रो कल्याण कलि में,
दत्तात्रेय रूप दयाल दिपे
जिय जटाधर जोगीय जाप जपे।।
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