March 25, 2023

लखपत ~ जयेशदान गढवी

मित्रो आपणो, लखपत तालुको ऐटले राष्ट्र नी सरहदे अनेक चढाव उतार जोइ बेठेलो, हिंदु, मुस्लिम, शीख धरमो ना आस्था स्थानो नो समन्वय। तथा पाणी वगर ना प्रदेश नी पाणीदार प्रजा ऐटले लखपत। आवो आजे लखपत विशे एक कच्छी कविता माणीये…….

।। लखपत ।।
*लखें जो लोडार, लखपत।
भारत जो पेरेधार, लखपत।
* कोटेसर कटेसर मड माता जो।
नारणसरजी पार, लखपत।
* लालछता ने पीर सावलो।
नानक जो धरबार, लखपत।
* कडे कमाणीयुं थइ लखें जी।
कडे भनी वीठो भेकार, लखपत।
* कारी खाण्युं कोलसें वारी।
लायटें जो चमकार लखपत।
* न चरो चोपें के पाणी पीतेला।
डीठा कंइक डुकार, लखपत।
* धरती रूपारी धांय घणा थींये।
जडे मीं वुठो श्रीकार, लखपत।
*भाडरो सांध्रो नरो गोधातड।
पोख जा आधार, लखपत।
* मेंयु गोइयुं जा खीर ने मावो।
भनी वयो शाउकार लखपत।
* धवाखाने मे धागतर न’वे।
मास्तर वगर जी निशार, लखपत।
* मधध बार जी कडे प न मीले।
मालिक ते ऐतबार, लखपत।
* गीने वारा गीने भले तोजे नां ते।
डिनो वारो अंइ दातार, लखपत।
* “जय” ऊथों पां भेठ भंधे ने।
धुनिया के चों ” न्यार, लखपत।
* * * * * * * * * * * * *
– कवि: जय।
– जयेशदान गढवी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: